अनुभूति में सुनील साहिल की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
उठो भी अब
काश
छोटी छोटी बूँदें
जब तुम आते हो
तुमसे मिलने के बाद
दरियागंज के आसपास
हास्य व्यंग्य में-
जोंक
गुरू की महिमा
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जब तुम आते हो
जब तुम आते हो
बजने लगता है संगीत चारों ओर
छा जाता है सतरंग अनंत में
पंख फैलाए नृत्य करने
लगते हैं मोर
नदिया में उठती है हिलोर
हृदय-धरा पर उतर जाते हो
जब तुम आते हो
थम जाती है झरनों की चाल
सरोवरों पर फूट पड़ता है
किरनों का जाल
उग आते हैं पंख अचानक
मेरी पीठ पर
तुम आसमाँ बन जाते हो
जब तुम आते हो
उग आते है पत्थरों के गर्भ से
नरम घास
सूर्य आ बैठता है पास
घेर लेती हैं मुझे रंगीन तितलियाँ
चूमने लगती हैं कुसुम-कलियाँ
सृष्टि-रचयिता बन जाते हो
जब तुम आते हो
चाँदनी रात में ही होने
लगती है बरसात
लिपट जाते हैं बादल मुझसे
खिल जाती है धूप
कर लेती है आत्मसात
खिलखिला उठती है पृथ्वी
बतियाने लगते हैं सितारे
सारे के सारे
आकाशगंगा बन जाते हो
जब तुम आते हो
तुम शकुंतला का अनुराग
तुम गीतांजलि का राग
तुम उर्वशी का फाग
कामायनी की आग
तुम अजंता एलोरा खजुराह
कामदेव की चाह
तुम बाईबल गीता
गंगा यमुना सरिता बन इठलाते हो
जब तुम आते हो
१६ मार्च २००६
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