अनुभूति में
शुचिता
श्रीवास्तव की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
इस बसंत में
प्रेम की तलाश
प्रेम खदबदाता है
प्रेम एक चुटकी खुशी
मुट्ठी भर तुम्हारी याद |
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प्रेम की तलाश
जिस दिन रची गयी होगी सृष्टि
उसी दिन रचा गया होगा प्रेम
फिर छिपा दिया गया होगा उसे
नीले अपरिमित नभ में
या गहरे समन्दर में
या शायद हिमालय की सबसे ऊँची चोटी पर
या की धरती की
सबसे नीचे की पर्त में लपेट कर
शायद प्रेम को रँग दिया गया होगा
पीले रंग में
और उसे रख दिया गया होगा
पीली हल्दी के ढेर में
या प्रेम में छिड़की गयी होगी
गुलाब की सुगंध
और उसे रख दिया गया होगा
गुलाब के बगीचे में
शायद प्रेम में टाँक दी गई होगी चमक
और उसे रख दिया गया होगा
सितारों के साथ
या प्रेम के कर दिये गए होंगे बारीक कण
और उसे रख दिया गया होगा
रेगिस्तान की जमीं पर
शायद प्रेम को
हरा कर दिया गया होगा
और उसे टाँग दिया गया होगा
हरे पेड़ों पर
या की प्रेम को सुनहरा कर दिया गया होगा
और मिला दिया गया होगा
धूप के साथ
या प्रेम को बना दिया गया होगा रंगहीन
और उसे मिला दिया गया होगा बारिश में
या प्रेम को
संगीत कर दिया गया होगा
और उसे
मिला दिया गया होगा गीत में
शायद प्रेम को नींद कर दिया गया होगा
और उसे मिला दिया गया होगा स्वप्न में
या फिर प्रेम को
मिला दिया गया होगा स्याही में
और उसे बैठा दिया गया होगा
शब्दों के बीच
या की प्रेम को
घोल दिया गया होगा आँसुओं में
और उसे रख दिया गया होगा
आँखों की तली में
और जिस दिन जन्म लिया होगा
पहले मनुष्य ने
उसी दिन से तलाशने लगा होगा वह प्रेम
प्रेम तलाशने में जब
पड़ने लगी होगी कम एक उम्र
तो फिर लिये जाने लगे होंगे कई कई जन्म
और प्रेम की तलाश में ही
किया जाने लगा होगा
स्वयं से प्रेम
प्रेम की तलाश
बहुत कठिन भी नहीं
प्रेम की तलाश
बहुत आसान भी नहीं
११ मई २०१५ |