अनुभूति में
शुचिता
श्रीवास्तव की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
इस बसंत में
प्रेम की तलाश
प्रेम खदबदाता है
प्रेम एक चुटकी खुशी
मुट्ठी भर तुम्हारी याद |
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इस बसंत में
इस बसंत में
छिप जाऊँगी मैं पीली सरसो के खेत में
तुम ढूँढने आओगे तो भर जाएँगी तुम्हारी हथेलियाँ
पीले फूलों की खुशबु से
या छिप जाऊँगी आकाश में
तुम ढूँढने आओगे तो घेर लेंगे
तुम्हें पीले बादलों के आवारा टुकड़े
या छिप जाऊँगी नदी की तलहटी में
तुम ढूँढने आओगे तो भीग जाओगे
सिर से पैर तक लहरों के जल से तरबतर
या छिप जाऊँगी मैं चाँद के पीछे
तुम ढूँढने आओगे तो रोक लेंगे
जगमगाते सितारे तुम्हारा रास्ता
या छिप जाऊँगी घने देवदार के पेड़ों के बीच
तुम ढूँढने आओगे तो नहा लोगे
बसन्त में झरती हुई पीली पत्तियों से
या छिप जाऊँगी घने पलाश के जंगलों में
तुम ढूँढने आओगे तो भर जायेगा
तुम्हारी आँखों में पलाश का सारा बसंतीपन
या छिप जाऊँगी काली पहाड़ी के पीछे
तुम ढूँढने आओगे और पुकारोगे मुझे एक बार
तो बार बार सुनोगे मेरे नाम की ही प्रतिध्वनि
इस बसंत में...
११ मई २०१५ |