अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शोभनाथ यादव की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
तलैया का चिलमन
मरती माँ के लिये
लौटी है रिश्ते लेकर

वैलेंटाइन डे

संकलन में-
गुलमोहर- आरक्त गुलमोहर

 

 

मरती माँ के लिए

माँ! दाखिल हो चुकी हो तुम
वातानुकूलित शयन-यान में
अर्द्ध-पारदर्शी काँच के पार
दिख रही हैं तुम्हारी धड़कनें
और चेहरे पर उड़ रहीं
लगभग गड्ड-मड्ड
यादों की परछाइयाँ
जैसे साबुन की पतली झिल्ली पर
बिलाते-मुस्काते इंद्रधनुष।
मैं जो बोलूँ
और तुम जो
सब ये मोटी तहें भेद
नहीं जुड़ता
संलाप नहीं बनता।
किन्हीं अनजान ऊँचाइयों पर से झुकी
तुम मानो लहरा रही हो
लकवा-खाई बाँह।
मृत्यु इतनी आसानी से समझ में आने वाली है?
यह एक ट्रेन है
जो धीमे-धीमे रेंग
ले जाएगी तुम्हारा विचित्र डिब्बा
जिसमें दाखिल हो चुकी हो तुम,
और मैं छूट जाऊँगा
प्लेटफ़ार्म पर हाथ हिलाता
मुँह जोहता
कहता-न कहता
संवाद-विहीन
एक ठहरा यात्री।

९ अक्तूबर २००९

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter