अनुभूति में
शोभनाथ यादव की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
तलैया का चिलमन
मरती माँ के लिये
लौटी है रिश्ते लेकर
वैलेंटाइन डे
संकलन में-
गुलमोहर-
आरक्त गुलमोहर
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लौटी है अलबम
लेकर
मेरी बेटी गई थी गाँव
और अलबम लेकर
लौटी है तस्वीरों का।
सिर पर पल्लू ओढ़े खड़ी है मेरी माँ
और पिता खड़े हैं-
गमछा लटकाए गले में।
नीम तले बँधी है
चितकबरी बछिया
और मेरी नातिन सोनू
पतली कइन से
छूती है बछिया को-
अपनी माँ की गोद में बैठी हुई।
दूर धूप में
झाँकता है बगीचा
आमों के दरख्तों का
घना था पहले बगीचा
अब हो गया है-
उजड़ा-उजड़ा सा।
इसी बगी़चे में
गुज़रा था मेरा बचपन-
ताकते हुए
पके आमों के टपकने के इंतज़ार में-
जेठ की दोपहरी की तेज़ चलती लू में।
अलबम लेकर
लौटी है मेरी बिटिया गाँव से-
खो गया हूँ मैं उसकी तस्वीरों में।
९ अक्तूबर २००९
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