हे कृष्ण
आज सारा भारत
पूर्ण भक्ति एवं श्रद्धा से
तुम्हें नमन कर रहा है।
हे योगीराज
जितेन्द्रिय
परम ज्ञानी
परम प्रिय
तुम्हारी भक्ति की धारा
एक पवित्र भाव बनकर
दिलों में बह रही है।
किन्तु हे परम प्रिय
परम श्रद्धेय
तुमने गीता में
सबको आश्वासन क्यों दिया?
स्वयं कर्म योगी होकर भी
सबको परमुखापेक्षी
क्यों बना दिया?
अब दुःख आने पर
लोग संघर्ष नहीं करते
तुम्हें पुकारते हैं।
हे जितेन्द्रिय
तुम्हारे भक्त
कामनाओं के दास बन चुके हैं।
भक्ति तो करते हैं
पर कर्म तज चुके हैं।
अन्याय से दुखी तो होते हैं
पर उसका प्रतिकार
नहीं कर पाते।
कब तक हम प्रतीक्षा करेंगे?
हमें बल दो कि हम
खुद अन्याय से लड़ पाएँ।
तभी तुम्हारा जन्म
दिवस मनाएँ
सच्ची श्रद्धांजलि दे पाएँ
सच्ची भक्ति कर पाएँ।
जय श्री कृष्ण
24 अक्तूबर 2007
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