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अनुभूति में शोभा महेन्द्रू की रचनाएँ

एक अहसास
जीवन डगर
मेरी परछाईँ
हे कृष्

 

एक अहसास

कितना सुखद अहसास है
कोई हर पल- हर घड़ी
मेरे साथ है।
कभी हँसाता है,
कभी रूलाता है
और कभी ---
आनन्द के उस समुन्द्र में
धकेल देता है
जहाँ------
अनुभूति की ख़ुमारी है
बड़ी लाचारी है।
मैं षोडषी बन
चहकने लगती हूँ।
उसकी बातों में
बहकने लगती हूँ।
अपनी इस दशा को
कब तक छिपाऊँ
और किसको अपना
हाल बताऊँ ?
अपनी उस अनुभूति के लिए
शब्द कहाँ से लाऊँ ?
किसी को क्या
और कैसे बताऊँ ?
ये तो अहसास है।
जो कहा नहीं जा सकता
समझ सकते हो
तो समझ जाओ।
नूर की इस बूँद को
मौन हो पी जाओ।
मौन हो पी जाओ।

24 अक्तूबर 2007

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