प्रश्न से विस्मय
तक ! स्त्री
मेरे मुँह में खाने का पहला कौर भरती...
माथा सहलाकर आँचल में छुपा लेती मेरा सर...
घाव पर नरम ऊंगलियों से
दवा लगाती और झुककर चूम लेती...एक मुस्कराहट देकर...
थके और दर्द से लरजते मेरे टखनों को चाप देती...
कोमलता से बतियाती हुई देर तक और
कभी अपने सीने से मेरा और कभी मेरे सीने पर अपना
सर लगा कर बच्ची की तरह सोती...
...माँ के बाद अब
पत्नी बनकर मातृत्व निभाती हुई...
तुम मेरे जीवन की एक
विलक्षण स्त्री हो...!
७ जनवरी २०१३ |