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अनुभूति में शशिकांत सिंह शशि की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
क्रांतिबीज
चाहत
जादूगर और कलुआ
बयान


 

  क्रान्तिबीज

माटी से हम गढ़ ही लेंगे
अपना सूरज
अंधकार का
आतातायी राज मिटेगा।

मिट जायेगा तम
या हम ही मिट जायेंगे
मिट भी गये तो भस्म सदृश
पूजे जाएँगे।

मोड़ ही देंगे
नदियों की निष्ठुर धारा को
सीचेंगे युग-युग से प्यासे
मरूस्थल को
बही नही जलधार तो
हम ही बह जायेंगे
सागर की छाती पर
नर्तन कर आयेंगे।

'प्यार' लिखेंगे
अम्बर के अकड़े माथे पर,
धरती के सपनों को
नभ तक पहुँचाएँगे
स्वप्न यदि टूटा तो बिखरेगा अतंर्मन,
क्रांतिबीज बन कण-कण में
हम रम जाएँगे।

१० फरवरी २०१४

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