अनुभूति में
रवींद्र मोहन दयाल
की रचनाएँ -
छंदमुक्त में -
अटल विश्वास
हार नहीं होती
स्याह बादल
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स्याह बादल
जिस स्याह बादल
ने छीन ली है
इस पूनम की रात में
मेरे चाँद सितारों की तस्र्णाई
वह कर ले अपनी मनमानी
जब तक क्षितिज से
रवि की गरिमा फूट न पाई
किन्तु
इस विकृत बादल से
निराश क्यों हो?
आते ही रवि को
क्षितिज से ऊपर
बजते ही भौंरों की बंसी
गाते ही पवन का मधुर सुर
छिन्न भिन्न होगी
यह स्याही
जैसे तेज़ धार में कोई काई
तब हर कंठ खुलेगा
हर तार बजेगा
हर स्वर बोलेगा
हर वाद्य बजेगा
क्षितिज से
क्षितिज पे
तो
रवि ही खिलेगा
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