अनुभूति में
रवींद्र मोहन दयाल
की रचनाएँ -
छंदमुक्त में -
अटल विश्वास
हार नहीं होती
स्याह बादल
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अटल
विश्वास
मुझको दुष्टों
ने रोका : विक्रात्य मिटाने भी आये
अस्तित्व मेरा समाप्त करने :
विष लिये सर्प भी आये
किन्तु
रोक सका है कौन उसे : जिसने बस चलना ही सीखा
बुझा सका है कौन उसे : जिसने बस जलना ही सीखा
मिटा सका है कौन उसे : जिसने बस जीना ही सीखा
विष भी तो अमृत बना उसके लिये : जिसने बस पीना ही सीखा
है मेरा यह विश्वास अटल
प्रशासनिक विधि को नये पृष्ठ दे जाऊँगा
विधि निर्माता हूँ मैं
रूढ़िवादी विधान बदल के जाऊँगा
इस मधुबन में मेरे जहाँ हर कली के ऊपर
जहरीले नागों के फन फुनकारते हैं
सर्प तो क्या है : सपोलों का भी
अस्तित्व मिटा के जाऊँगा
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