अनुभूति में
रश्मि भारद्वाज की रचनाएँ-
छंद मुक्त में-
कुछ शब्द चाहिये
जननी भोग्या भी बन सकती है
तुमसे है कविता
मैं नहीं कर पाती तुम्हें प्रेम
हाँ इसे प्रेम ही कहेंगे शायद
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तुमसे है कविता
मैं जमा करती हूँ अपने अंदर
दुखों के छोटे छोटे टुकड़े
ज्यों चीटियाँ जमा करती हैं दाने
कुछ बेहद बुरे दिनों के लिए
जब कभी आसपास कमी हो जाती है नमी की
शब्द छोड़ने लगते हैं मेरा हाथ
आस पास की आवाजें तैरने लगती हैं रेत के समंदर में
खुलती है मन की एक नन्ही सी खिड़की
और पिघलने लगते हैं वह सहेजे गए टुकड़े
नीली नदी के बहाव में डूबती उतरती मैं
तैयार हो जाती हूँ फिर दुनिया के लिए
उसके भेजे तमाम स्याह, धूसर दिनों के लिए
दुख, तुम बने रहना मेरे चिर संगी
कि तुम्हारे रहने से ही है मेरी कविता
और मैं
२३ फरवरी २०१५
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