अनुभूति में
रश्मि भारद्वाज की रचनाएँ-
छंद मुक्त में-
कुछ शब्द चाहिये
जननी भोग्या भी बन सकती है
तुमसे है कविता
मैं नहीं कर पाती तुम्हें प्रेम
हाँ इसे प्रेम ही कहेंगे शायद
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जननी भोग्या भी बन सकती है
दायरों और मापदंडों का इतिहास नया तो नहीं
सदियों से धरती की उपाधि से गर्वित मन
इस सच से अनजान भी नहीं
कि जननी भोग्या भी बन सकती है
पुराने मानकों से निवृति पाए बिना
अब नहीं पनप सकता है प्रेम
माना कि बोये गए सृजन के बीज
लेकिन इनकार करती है वह धरती होने से
जिस पर किया जा सके स्वामित्व
जिसे काटा जोता और बोया जा सके
जिसे ख़रीदा और बेचा जा सके
जिसे रौंदा जा सके निर्मम पद प्रहारों से
और फसल नहीं आये तो
चस्पा कर दिया जाए
बंजर का तमगा।
दायरे तब भी रहेंगे
मापदंड तब भी तय किये जायेंगे
विभक्त तब भी होगी वो
तमाम स्नेह-बन्धनों में
लेकिन ये सुकून रहेगा
उसने खुद को खोया नहीं है
विशेषणों के आडम्बर में
धरती होने से इनकार करना
विद्रोह नहीं है उसका
बस एक भरोसा है
खुद को दिया हुआ
कि उसका 'स्वत्व 'सुरक्षित है
कि उसने सहेज रखा है
खुद को भी
सब कुछ होते हुए भी
वो पहले है इक इंसान
हर परिभाषा, दायरे और मानकों से परे
२३ फरवरी २०१५
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