अनुभूति में
रश्मि भारद्वाज की रचनाएँ-
छंद मुक्त में-
कुछ शब्द चाहिये
जननी भोग्या भी बन सकती है
तुमसे है कविता
मैं नहीं कर पाती तुम्हें प्रेम
हाँ इसे प्रेम ही कहेंगे शायद
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कुछ शब्द चाहिये
मुझे फूलों की तरह हल्के कुछ शब्द चाहिये
निर्दोष, पवित्र, मासूम शब्द
जो उठा सकें बोझ
मेरी भावनाओं का
जिनके सहारे मैं
जी सकूँ हमारा रिश्ता
शायद ये भारी-भरकम शब्द
जो तैर रहें होते हैं हमारे बीच
हमें दूर कर देते हैं हर बार
थोड़ा और।
बौद्धिकता का एक
छद्म आवरण
छीन लेता है
रिश्तों की गर्माहट
और हम ठिठुरते रह जाते हैं
शब्दों के बनते-बिगड़ते
समीकरण के साथ
नितांत अकेले।
कितनी सहज रही होगी ज़िंदगी
एडम और ईव की
ज्ञान का वर्जित फल चखने से पहले
भावनाएँ तो तब भी रही होंगी
उद्दात, प्रेममयी
नफरत, क्रोध, ईर्ष्या
सब कुछ तो रहा होगा
लेकिन नहीं ढोना होता होगा उन्हें
कृत्रिम शब्दों का बोझ
आती होगी उनमें से
बनेले फूलों सी ही गंध
ऐसे फूल जिन्हें
माली की निरंतर देख रेख में
गमलों में नहीं उगाया जाता
जो खुद ही उग आते हैं
अपनी मिट्टी, अपनी रोशनी
और अपने ही आकाश के सहारे
मुझे भी ऐसे ही शब्द उगाने हैं
मेरे और तुम्हारे लिए
उधार के शब्दों से
नहीं लौटा सकूँगी
ज़िंदगी का वो बकाया
जो मुझे तुम्हारे साथ रहकर ही लौटाना है
२३ फरवरी २०१५
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