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अनुभूति में रमेश नीलकमल की रचनाएँ —

अगिया बैताल मौसम
कौन जाने
बीसवीं सदी
सन्नाटा

 

कौन जाने

धूप-सी उजली हुई है रात
कौन जाने
जल रहे हों चाँदनी के पाँव

घाटियाँ सुकुमार उनको डँस न जाए आग
जग उठें पगडंडियाँ भी, उचरता है काग
हैं विडालों ने लगाए घात
कौन जाने
सन न जाए लहू से हर ठाँव

पर्वतों की कोख से नदियाँ निकल बल खाँय
पेड़-पौधों से कहो तनकर खड़े हो जाँय
सजग होकर रहें पल्लव-पात
कौन जाने
ज़हर फैले अस्मिता की छाँव

नागफ़नियों ने उगाए द्वंद्व हर घर-द्वार
मसनदी बातें न होती हैं कभी उपचार
पाँव उलटे चल रहे जज़्बात
कौन जाने
कब मिलेगा स्वप्न-सा हर गाँव

9 जनवरी 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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