अनुभूति में
रमणिका गुप्ता
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
खजुराहो खजुराहो खजुराहो
तुम साथ देते तो
मितवा
मैं आज़ाद हुई हूँ
मैं हवा को लिखना चाहती हूँ
रात एक
युकलिप्टस
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तुम साथ देते तो
तुम साथ देते तो मैं --
सात समुन्द्रों को पीने की ललक
अगस्त्म मुनी से
छीन लाती
ब्रहमाण्ड में धरती-सी धूम-धूम
अपने अक्ष पर
तुम्हारे गिर्द घूमने का
दम भरती
शनि और मंगल के रथ पर
सूरज की परिक्रमा
कई-कई बार
कर आती
तुम साथ देते तो मैं
हिमालय के शिखर पर चमकी
पहली किरण की उष्मा
सहेज लाती
समुद्र की तलहटी में
गहरे-बहुत गहरे तिरती
मछलियों की आंख की पुतली से
प्यार का मोती
चुरा लाती
लेह में गहरे
बहुत-बहुत गहरे बहती संगे-ख्वास की
हरी-हरी धार के हहराते
विद्रोही-गीत
हर लाती
तुम साथ देते तो मैं
माहाभिनिष्क्रमण पर निकले गौतम बुद्ध को
कई-कई बार
लौटा लाती
द्रौपदी से अम्बापाली का क्रम बदल कर
इतिहास से युधिष्ठर को
हटा आती मिटा आती
लद्दाख के बौद्ध मंदिरों में रची
मुक्त प्रेम-कथाओं से
गुप-चुप
एक प्रेम-प्रसंग चुरा कर
जी आती
तुम साथ देते तो मैं
पाम्पई की राख से
हिरोशिमा के विनाश से बची
जिजीविषा बीन
टुकड़ा-टुकड़ा मनुष्यता में कई-कई बार
बांट आती
पृथ्वी का आंगन प्रेम से लीप
संवेदना की अल्पना
पूर आती
बंजर धरती पर प्यार के बिरवे कई-कई बार
रोप आती
तुम साथ देते तो
तुम साथ देते तो
तुम साथ देते तो !!
नोट :- 'संगे ख्वास` सिन्धु नदी को कहते है लेह में। रचनाकाल :
२०.११.९४, विज्ञापन बनता कवि में संकलित (पेरिस से क्यूबा जाते हुए
हवाई जहाज में)
२६ जुलाई २०१०
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