अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में रमणिका गुप्ता की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
खजुराहो खजुराहो खजुराहो
तुम साथ देते तो
मितवा
मैं आज़ाद हुई हूँ
मैं हवा को लिखना चाहती हूँ

रात एक युकलिप्टस

 

मैं हवा को लिखना चाहती हूँ

१.

'जरा कलम देना`
मैंने समय से कहा
'मैं हवा को लिखना चाहती हूँ`
कि धीरे से उसने मेरी तरफ
एक सरकंडा सरका दिया
और कहा
'लो लिखो!`

मैंने भागती हवा से कहा
'लो ये सरकंडा`
हवा जो रेगिस्तान के टीलों को
एक जगह से उठाकर रख देती है दूसरी जगह
ने लिख दिया
'उजड़ने का अर्थ!`

२.

'तनि किताब देना`

मैंने समय से कहा
मैं हवा को पढ़ना चाहती हूँ
कि धीरे से उसने मेरी तरफ
एक बंजर मरुथल खिसका दिया
और कहा
लो पढ़ो

मैंने घिरनी-सी चक्कर खाती हवा से कहा
'लो ये किताब`
हवा
जो उलटने-पलटने में माहिर
ने सरसरा कर पलट दिए किताब के वरक
और पढ़ दिया
'बंजर होने का अर्थ`

३.

'तनि दिशा देना`

मैंने समय से कहा
'मैं हवा का रुख मोड़ना चाहती हूँ`
कि धीरे से उसने मेरी तरफ
झुका-झुका क्षितिज घुमा दिया
और बोला
'लो मोड़ो!`

मैंने उड़ती हुई हवा से कहा
'तनि रुको और सुनो`
अपने प्राणों में बंधी घंटियों की ध्वनि
हर झोंके के साथ जो पैदा करती हैं
जिन्दगी का एक नया गीत
रुको कि अभी शेष है
जिन्दगी की जिजीविषा
प्राण और साँस
शेष है धरती, आकाश और क्षितिज

और हवा
श्वास बनकर लौट आई
धड़कने लगी
मरे दिल में!

४.

मैंने सरकंडे की कलम बनाई
मरुथल की किताब का वरक खोला
क्षितिज का रुख अपनी तरफ मोड़ा
और चल दी सूरज के रास्ते
समय मेरे संग चल रहा था।

नोट : ४.१०.०८ को ४.३० बजे सुबह हार्टअटैक के बाद

२६ जुलाई २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter