अनुभूति में
राकेश
गुप्ता की रचनाएँ
कविताओं में-
जीवन का सफ़र
मन
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मन
सर्पगंधा के वनों में घूम आया, मेरा मन
घुप अँधेरी गुफ़ा में बैठा ऊबा हुआ
सुबह की पहली किरण के साथ ही
सतलज में नहा आया।
नहीं रोकूँगा आज,
यदि तोड़ ले नीले अपराजिता के फूल
या गाने लगे अचानक
पपीहे के साथ।
मन जो मछली के साथ डूबा
और मछेरे के जाल में उतराया
मन को हरे-हरे पंख लगे हैं इसे
उड़ जाने दो
रेगिस्तान के पार।
या फिर, जहाँ से नीलगिरि के पर्वत शुरू होते हैं,
बर्फ़ में जमकर सो लेने दो इसे. . .
1 मई 2007
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