अनुभूति में
राकेश
गुप्ता की रचनाएँ
कविताओं में-
जीवन का सफ़र
मन
लोग |
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जीवन का सफ़र
गाड़ी में सोते हुए लोग
आख़िर पहुँच ही जाते हैं
अपनी-अपनी मंज़िलों पर।
टेढ़े-मेढ़े उड़ते पंछी
दिन डूबते
आ ही जाते हैं
अपनी-अपनी
दरख़्तों पर।
कहाँ-कहाँ घास चर आती है बकरी
और बँध जाती है, खूँटे से।
और. . .जगे आदमी, उड़ते पंछी, घास चरती
बकरी
तीनों ने कहा
मुझे कुछ नहीं पता,
जब मैंने पूछा
जीवन के सबसे बड़े सच के बारे में।
तीनों ने नकारा परमसत्य को, तीनों अनभिज्ञ, अग्रसर. . .
अपने-अपने गंतव्य की ओर।
खुला आकाश हरी-भरी धरती
ज़िंदगी का सफ़र और ऊँघता आदमी।
1 मई 2007
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