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मातृभाषा के प्रति - देवनागरी

 

 

परी कथाएँ

मैं आज से रचूँगा
परी कथाएँ।
आप लोग चाहें
तो समझ ले मुझको
पलायनवादी या कुछ और।
यथार्थ को चित्रित कर
अपने साहित्य को
समाज का आईना बनाते-बनाते
मैं ऊब चुका हूँ।
मेरी लेखनी को
उबकाई आ जाती है,
जब आप लोग मेरी नायिका के
यौन-शोषण के चित्र को देख
चटखारा लेते हैं,
और आशा करते हैं
मेरी और भी अधिक
विस्फोटक रचना की।
मैं इस समाज की
सडांध भरी भूमि पर
बोना चाहता हूँ
स्वप्नों की फसल।
आज से मेरी कथाओं में होंगे,
केवल स्वप्नों के राजकुमार
कल्पना के घोडों के सवार।
जो राजकुमारी के महल में
प्रवेश के समय चलाएँगे
हीरे जड़ी तलवार।
महल के दरबान
चाय-पानी नहीं माँगेंगे,
राजकुमार राजा से
माँगेगा राजकुमारी
बिना कलर टीवी,
फ्रिज व कार के।
मेरी परी कथाएँ भरेंगी
आप लोगों की आँखों में
आशाओं के रंग।
उन्हीं रंगों के फूल खिलेंगे
स्वप्नों की बेल में
यथार्थ की भूमि पर।
इसीलिए मैं
आज से रचूँगा
केवल परी कथाएँ।

९ नवंबर २००६

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