अनुभूति में
राजेश पंकज की
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संकलन में-
मातृभाषा के प्रति -
देवनागरी
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अश्रु गाथा
आँसुओं का धर्म
क्या है?
कोई कब यह जान पाया?
चेतना का वह धरातल,
जिससे फूटी अश्रुधारा,
जिसका नहीं कोई किनारा,
शब्द जिसको छू न पाया,
उस गुहा का मर्म क्या है?
पाषाण मन मे करुणा जागी,
कलिंग में जब
रक्त ने चीत्कार की थी।
अश्रु की गंगा नहा कर अशोक ने भी,
शोक सरिता पार की थी।
इस करुण जल के स्पर्श से,
रत्नाकर ने काव्य का वह रत्न पाया,
महर्षि वह स्वयं हुआ, और
नायक को ईश्वर बनाया।
उस बूँद का विश्वास क्या था?
जो फूटी गोधरा की आँख से,
और कारिगल की धूल से,
जो बही सागर तटों के पार और
निगले जीवन कितने फूल से?
सीता का संबल बनी थी,
राम का यह बल बनी थी,
पुत्र का बलिदान देकर,
लंकेश के मन में घनी थी।
अश्रु के अभिषेक से ही,
पुत्र, भ्राता, नर, पति के आदर्श का,
राम ने अवतार पाया,
अश्रु जल से कलुष धोकर
कैकई ने ममता का संसार पाया।
आँसू न जाने हिंदु-मुस्लिम,
न करे सिख और मसीह में भेद कोई,
जब बहे, सब कुछ कहे,
रह न जाए भेद कोई।
रंग आँसू का काला न गोरा,
भूख का और प्यास का,
आनंद के अंतिम शिखर का,
और टूटी आस का।
आँसुओं का धर्म क्या है?
कोई कब यह जान पाया?
चेतना का वह धरातल,
जिससे फूटी अश्रुधारा,
जिसका नहीं कोई किनारा,
शब्द जिसको छू न पाया,
उस गुहा का मर्म क्या है?
आँसुओं का धर्म क्या है?
९ नवंबर २००६
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