अनुभूति में
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द्वन्द्व
(प्राणी शास्त्र से संबंधित कविता)
आज आमाशय की तंग गलियों में
जठर का रिसाव रोज़ की अपेक्षा थोडा कम है
प्राण वायु व कलुषित वायु की कलह से उपजे,
वायु के बुलबुले
जठराग्नि को हवा दे रहे हैं
फलतः मेरु द्रव में मद्धम - मद्धम
स्पंदन की अनुभूति हुई है,
जो मस्तिष्क द्रव से मिल,
मेरु- मस्तिष्क द्रव में,
अनायास ही कोलाहल में परिणित हुआ है,
और अब मस्तिष्क पटल पर,
कुछ पीली, सफ़ेद तरंगों के
उद्दीपन का फैलाव,
शरीर में एक अजीब सी
नवजात हलचल को जन्म दे रहा है,
क्या ये,
किसी घातक रोग की विलक्षणता के लक्षण हैं
या
किसी के प्रेम के अनुमोदन का ज्वर
और उसकी मौन स्वीकृति की
उदघोषणा से पहले का
मानसिक द्वन्द
(प्राण वायु - ओक्सीज़न, कलुषित वायु- कार्बन डाई ऑक्साइड,
मेरु द्रव-स्पाइनल फ्लुइड, मस्तिष्क द्रव-सेरेब्रल फ्लुइड,
मेरु - मस्तिष्क द्रव---सेरेब्रो- स्पाइनल फ्लुइड)
२३ मई २०११
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