अनुभूति में
पुष्पा तिवारी की रचनाएँ
छदमुक्त में-
आजकल क्या लिख रही हो
आत्मविश्लेषण
कितना जानती हूँ
छोटी छोटी बातें
व्यावहारिक बनने की चेष्टा
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व्यावहारिक बनने की चेष्टा
मैं
जब भी उतरती हूँ कार से
हफ्ते के सब्जी बाजार में
मेरे होंठ करते हैं
जब भी मोल भाव
एक दो रुपए के लिए
छियालिस रुपये का पैट्रोल
दस रुपये की बचत
हिसाब लगाता दिमाग
आत्मा का थोड़ा सा अंश चटखता है कहीं
कोसता है मुझे
जिसे सुनकर भी अनसुना
करती रही मैं
थोड़ी सी तारीफ
थोड़ी सी बड़ाई सुने जीती रही
उसे ही समझती रही जीना
ठगाती रही दुनियादार बनने
कुचलती रही जमीर
रिश्तों को बनाने
सफल होने के लिए
क्या क्या हथकंडे नहीं अपनाए?
सही की तलाश में
थोड़ा सही और ज्यादा गलत होता
फिर फिर सही साबित करने
पूरा जोर लगाती
थक गई
व्यावहारिक बनने की चेष्टा
एक दिन
और
खड़ी हो गई रीढ़ की हड्डी तनकर
एक दिन
वह न तो दिन था न रात
कोई ऐसा समय
जो देख रहा था घड़ी
मुझमें
खुद के उतरने की
६ दिसंबर २०१० |