अनुभूति में
पुष्पा तिवारी की रचनाएँ
छदमुक्त में-
आजकल क्या लिख रही हो
आत्मविश्लेषण
कितना जानती हूँ
छोटी छोटी बातें
व्यावहारिक बनने की चेष्टा
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आत्म विश्लेषण
बाँयी करवट लेते ही
गुनगुनाने लगता कोई
बंद पलकों के अंदर
खिल जाता इंद्रधनुष
धुँधला धुँधला कोई दृश्य
अपने बाहरी परिदृश्य में आने उतावला
पर
शब्द नहीं मिलते
इसी ऊहापोह में
करवट बदल लेती
शब्दों का विशाल जाल
जैसे दूकान लगी हो
उलझ जाती शब्दों में
ठीक जगह पर ठीक शब्द
के लिए सोचती तो
शब्दों के भंडार में
जगह गायब मिलती
करवटें बदलती बदलती
रात बीत जाती
नींद नहीं आती
६ दिसंबर २०१० |