अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में प्रेमरंजन अनिमेष की रचनाएँ—

अंजुमन में—
नई रुत (लंबी ग़ज़ल)

कविताओं में—
बंद
बचे हुए लोग
बाज़ार में इंतज़ार
लिफ़्टमैन
लौटना

  नई रुत

इस नई रुत में नया क्या है
सात रंगों में सजा क्या है

घर में आधी रात को उठकर
देखता हूँ मैं बचा क्या है

ऐसा बँटवारा हुआ लोगो
हाथ मलते सब मिला क्या है

भागती इक भीड़ है बेदम
पूछते हैं सब हुआ क्या है

मत फरिश्ता कहना बच्चों को
चौंकते हैं ये बला क्या है

सो गए हैं रहनुमा सारे
ऐ खुदा ये माजरा क्या है

सुब्हदम दिल तो धुआँ देगा
रात भर आखिर जला क्या है

मैंने अपनी बात तो रख दी
जान लूँ तुमने सुना क्या है

लिखनी है गर प्यार की चिट्ठी
सोचता क्यों कायदा क्या है

होंठों में जो गुड़ रखा थोड़ा
खोल मुँह देखूँ घुला क्या है

चूम कर रोनी सी क्यों सूरत
इसमें इतना भी बुरा क्या है

लड़कियाँ कुछ दोस्त हैं मेरी
पूछती हैं दिल भला क्या है

अब कहाँ रखते जुबाँ हम भी
तू भी मत कह मुद्दा क्या है

खोजती बीमार इक सरकार
अच्छे लोगों की दवा क्या है

रोज़ देता मौत की धमकी
एक दिन उसको बुला क्या है

एक मन को मारते सौ बार
इन गुनाहों की सज़ा क्या है

आसमाँ में चाँद सूरज सब
इस ज़मीं पर फिर ढला क्या है

प्यार तो मिलता मिलो जब भी
जाऊँ करनी इत्तिला क्या है

देखता है कौन अब किसको
देखते हैं सब मिला क्या है

माँग लो सबकी खुशी इसमें
इक दुआ है दूसरा क्या है

दोस्त इस दुख का पता मत पूछ
मेरे पास इसके सिवा क्या है

तेरा खत है ज़िंदगी तेरी
देख लूँ फिर भी लिखा क्या है

बोलता रख होंठों की चिट्ठी
बाद में पढ़ना लिखा क्या है

ठीक है दिल में है कोई तो
मुझको आँखों में सुला क्या है

जिससे है रिश्ता नहीं कोई
पूछता आकर बना क्या है

प्यार से पहले नहीं सोचा
प्यार कर अब सोचना क्या है

चल दिए जब देख तेरी राह
रास्ता फिर देखना क्या है

दिल है तेरा बंद मुट्ठी-सा
बंद मुट्ठी में बता क्या है

रात सीने पर रखे थे होंठ
अलसुबह देखो उगा क्या है

बात मानों कहता इक बच्चा
तुमको इसका तजुर्बा क्या है

उठ रहे हैं शामियाने अब
इस गली में झाँकता क्या है

था यहीं तब तो नहीं आया
जा चुका फिर ढूँढता क्या है

इसका क्यों अफ़सोस हो कोई
दरमियाँ अपने रहा क्या है

पूछता है चूम कर पलकें
रात सपने में लिखा क्या है

शब झलकते जिस्म के अक्षर
देखता हूँ अनपढ़ा क्या है

आदमी की इस खुदाई में
आदमी का आसरा क्या है

नाम पर इनसान के रोता
बैल-सा हल में जुता क्या है

मैं तो हूँ अपनी जगह मौजूद
हर जगह मेरी जगह क्या है

किसलिए आँखों में ये शबनम
हँसते-हँसते दिल भरा क्या है

फिर से है दर पर लगा ताला
देख ताले में लगा क्या है

सब खुले बाज़ार ने खोला
भाव साँसों का खुला क्या है

धूप में बैठे हुए बेकार
चल रही दस्ते सबा क्या है

मारना है मार फिर देना
सुन तो लो वो कह रहा क्या है

राह जिसकी देखता कबसे
ले खबर घर से चला क्या है

चाँद हो जाता सुबह सूरज
एक बच्चे ने लिखा क्या है

जानते हैं फिर भी कहते हैं
कहने से भी फ़ायदा क्या है

वो तुम्हारे साथ था अब तक
अब उसे देता सदा क्या है

कोई कह दे तो न रख उँगली
'देख होंठों पर लगा क्या है'

कौड़ियाँ नाराज़ हैं इससे
मोल में उनके बिका क्या है

इसलिए शर्तें लगाते हैं
इस जहाँ में शर्तिया क्या है

खिंच रहे हैं सब उसी जानिब
इतने परदों में छुपा क्या है

बात मुझसे बंद है कबसे
बंद होंठों से जगा क्या है

क्या करें बच्चे गुलेलों का
इन दरख्तों पर फला क्या है

खंडहर कितना बड़ा हो क्या
तेरे पीछे रह गया क्या है

ज़िंदगी अहसास बस इसका
उसके जाने पर रहा क्या है

है कहाँ कुछ जान या पहचान
खाल के भीतर भरा क्या है

फिर दबा कर थाहता कोई
सीने के भीतर दबा क्या है

ज़िक्र जिसका सारी महफ़िल में
उठ के देखो चल दिया क्या है

प्यार तो इक रोशनी की खोज
रोशनी में खोजता क्या है

तयशुदा है हम तरक्की पर
हर तरफ़ फिर गुमशुदा क्या है

तू नहीं तो धूप राहों पर
नर्म साये सा तना क्या है

उस नज़र-सा कुछ कहाँ रोशन
उसकी यादों-सा घना क्या है

पहले-पहले मिलता जो कोई
देखती वह देखता क्या है

मुसकुरा कर पा ली इक मुसकान
आशना नाआशना क्या है

दस्तकें दे थक के दर से लग
तू खुदा है सुन रहा क्या है

दो घड़ी रहना हरे मत तोड़
ज़र्द पत्ते ही बिछा क्या है

है ये हाहाकार या जयकार
हरसू उठता शोर-सा क्या है

भूल जाता नाम तो कहता
नाम में आखिर रखा क्या है

इक कड़ी को समझूँ तो पहले
क्या बताऊँ सिलसिला क्या है

बिन रुके शब भर गिरी शबनम
दिन ने फिर देखा खिला क्या है

ज़हर या अमरित हो चाहे कुछ
होंठों पे रख दे ज़रा क्या है

हूँ सुकूँ मैं पास अपने देख
गलियों गलियों झाँकता क्या है

आइने में भी वहीं आँखें
आँखें हैं तो आइना क्या है

सारी गुलशन मिल गई जिसको
अब उसे छूना मना क्या है

ज़िंदगी के साथ चलता हूँ
देखें सब उसने चुना क्या है

दर्द हमदर्दी दुआ या दिल
कुछ किसी से माँगना क्या है

अब नहीं कोई किसी का भी
मन मगर ये मानता क्या है

बीते कल के ज़र्द पन्ने भी
सोने जैसा तौलता क्या है

जोड़ मत रिश्ते बुने कितने
देख रिश्तों में बुना क्या है

सूख जाएँगे हवा में आप
ज़ख्मों को यों बाँधना क्या है

धड़कनों को साँसों से मत छू
आग को देना हवा क्या है

हँसती है सुनकर ग़ज़ल मेरी
रोने गाने से बना क्या है

दिल से भी ज़्यादा है जो उजड़ी
ऐसी बस्ती में बसा क्या है

इसमें कोई सुई न धागा ही
देख होंठों ने सिला क्या है

चाँद कब है चाँदनी के पास
चाँदनी में चाँद-सा क्या है

रस्ते-रस्ते लोग हैं कितने
साथ होने में लगा क्या है

बावला-सा पूछता सबसे
तू बता मेरा पता क्या है

नींद में फिर मेरे सीने में
तेरी पलकों-सा चुभा क्या है

है ठिठोली उसकी जो पूछे
कुछ किए बिन ही हुआ क्या है

तकते-तकते पा लिया खुद को
अब तू चाहे आ न आ क्या है

पलकों के पीछे जगा है कौन
आँखों के आगे गिरा क्या है

सामने वो कब नहीं रहता
सच का करना सामना क्या है

टूट कर ही जानता कोई
टूट कर बनना भला क्या है

दुनिया भर में प्यार को देखूँ
मुझको वह करवट दिला क्या है

कहता है कह कर ज़रा देखो
सुनता कोई सुन रहा क्या है

पूछता छू कर ज़रा देखूँ
कहता वो छूना ज़रा क्या है

है ढला सोने-सा तेरा जिस्म
जिस्म में तेरे ढला क्या है

कौन इस मिट्टी से है जाता
उस फलक से लौटता क्या है

है किसी अनजान की दावत
दोस्त तेरा मशवरा क्या है

मुख्तलिफ़ कितनी जुबानें हैं
शायरी का तर्जुमा क्या है

आया था अच्छा गया अच्छा
इसमें कुछ शिकवा गिला क्या है

आँसू पीते ऐसा क्यों चेहरा
इसमें इतना भी बुरा क्या है

सिर पे है जिसको बिठा रक्खा
पाँव भी उसके दबा क्या है

घर बने हैं दश्तो-सहरा में
रह के भी कोई डरा क्या है

दूर से उस शहर का है खौफ़
आ के फिर कोई फिरा क्या है

जानता हूँ हो चुका पहले
बोल भी दे फ़ैसला क्या है

है ख़बर सबको पता लेकिन
अपने होंठों से बता क्या है

बाँटता हूँ जो मिला सबसे
क्या किया है और दिया क्या है

मेरे बदले जी रहा है कौन
मैंने बदले में जिया क्या है

आसमाँ या आशियाँ कुछ भी
हम न जानें ऐ बया क्या है

होंठ भर रख दे हथेली पर
ना मैं पूछूँ ना बता क्या है

सोचकर अपना बनाते सब
अपनेपन से फ़ायदा क्या है

तेरी चिट्ठी या कि दिल मेरा
जेब के भीतर गला क्या है

रख वफ़ा की उनसे ही उम्मीद
जो नहीं जानें वफ़ा क्या है

रंगो - बू मेरा पसीना था
आज इसमें मिल गया क्या है

हर सिरे से जल रहा इंसान
फिर भी बुझता जा रहा क्या है

बावला इक रास्ते के बीच
हाथ उठा कर माँगता क्या है

जो पढ़ाता है अमन का पाठ
उसके दामन में सना क्या है

आखिरी मंज़िल पे पूछे वो
इसके आगे रास्ता क्या है

तू नहीं फिर भी खुले हैं दर
वक्त आए जाएगा क्या है

हर कोई उसकी तरह लगता
जाते-जाते कर गया क्या है

यार हरदम यार रहते हैं
रुख जिधर बदले हवा क्या है

सोचती हो मुझको ही हर पल
मुझपे ही वो जाएगा क्या है

बढ़ते फिर खंजर लिए वहशी
नन्हे बच्चे खिलखिला क्या है

दूरियाँ लिपटी हैं पाँवों से
चल रहे तो फ़ासला क्या है

दो तपिश सूरज को कुछ अपनी
सर्द आहों से हुआ क्या है

इक ग़ज़ल के सौ से ज़्यादा शेर
कह रहा 'अनिमेष' क्या-क्या है

३१ मार्च २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter