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अनुभूति में प्रभा शर्मा की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
आज
गुपचुप गुपचुप
पेड़, तुम सचमुच हो बड़े
यह सृजन
ये ऊँचाइयाँ

 

आज

न भूत न भविष्य
न हर्ष न विषाद
न भय न कामना
न चाह न विरक्ति
बस यह एक पल
आज अभी
इसमें है जीवन ,
मोती-सा उजलापन
चन्दन-सी महक
अंकुर-सी ताजगी
समाधि -सी अनुभूति
आज नहीं तो कुछ नहीं
न रुको,
बटोर लो इसे
जी भर जीने को
बस एक आज ही काफ़ी है!

२१ जनवरी २०१३

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