अनुभूति में पद्मा
मिश्रा की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
आओगे न बाबा
खामोशियाँ
जागो मेरे देश
माँ
शीत से काँपती
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खामोशियाँ
खामोशियाँ टूट रही हैं
गूँज रहा है हवाओं का संगीत
पात पात बिहँस उठा है -
बसंत के बाद -पहली बार
मुस्काई हैं कलियाँ -डालियों के मौन में
ये कौन आ गया है -कि
बहकी निगाहें हरसिंगार की
नूपुरों में खनकती हँसी सी -
तुम हो क्या?
हाँ, तुम ही तो हो- फूलों की महक में
जीवन के गीत में- अनछुए दुलार सी
पोर पोर सँवर उठा
भँवरों के प्यार में
गुनगुनाती आ गई, लो,
पालकी बहार की
१ फरवरी २०२२ |