अनुभूति में पद्मा
मिश्रा की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
आओगे न बाबा
खामोशियाँ
जागो मेरे देश
माँ
शीत से काँपती
|
` |
जागो मेरे देश!
जागो मेरे देश!
थम जाएगा
वादों-नारों-नगाड़ों का शोर
खामोश हो जाएगी -
अघोषित महाभारत की दुनिया
अब टूट रही है खामोशियाँ -
अंतर्मन की -
खामोशियों को टूटना ही होगा
सुनो- अंतरात्मा की आवाज सुनो
कभी तो जागे यह अंतश्चेतना
नहीं चाहते क्या?
इस जागरण को मुखर होने दो
बदल जाने दो सारी तस्वीरें
तभी बदलेगा -समूचा परिदृश्य
उन तस्वीरों के बदले रंग -
उनका मौन रेखाचित्र
एक नई इबारत लिखेगा -
संवेदना की लेखनी से
मानवता के नाम --
जागो मेरे देश!
१ फरवरी २०२२ |