अनुभूति में पद्मा
मिश्रा की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
आओगे न बाबा
खामोशियाँ
जागो मेरे देश
माँ
शीत से काँपती
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आओगे न बाबा
मेरे गाँव की बगिया में
आम फरे हैं न बाबा?
आई होंगी मंजरियाँ- चटकी हुई
अम्मा अब भी गाती है न
"कच्चे आम की अमोली बाबा लेते आना जी"
मोरी बासंती चुनरिया बाबा लेते आना जी"
मुनियाँ ने चटनी पीसते
गाया था वही गीत-बचपन का
हाथों के छालों में घुल रहे थे
पलकों के आँसू
मायके की देहरी से
दूर बसी ससुराल की देहरी तक -
सारे रास्तेऊबड़ खाबड़ -
पग डंडियाँ उलझी हुई हैं बाबा, मेरी जिन्दगी की तरह
मुझे अपने बाग़ की अमियाँ ला दो न!
यहाँ आम महँगे हैं -
अब कोई नहीं ओढाता बासंती चुनरिया
अम्मा के दिठौने की काली अँखियों में
रसोई का धुआँता अँधेरा है
यहाँ सपने नहीं मुरझाया सबेरा है
रोटी है, चौका है, चूल्हा है
यहाँ आमरस नहीं बाबा-नाउम्मीदों का
उदास रंग बरसता है-
मुझे ला दो बाबा-कच्ची अमोली, बासंती चुनरिया
और सपनो का मुट्ठी भर आसमान -
आओगे न बाबा?
१ फरवरी २०२२ |