साथ
किसी का साथ
एक सा नहीं रहता
नहीं रहती नदी एक सा
नहीं रहता आकाश एक सा।
बदलना अपनों का
बुरा मानते आए हैं हम
नहीं चाहते कि बदले कुछ भी
संबंधों के दरम्याँ।
पर दुनिया बदलती ही रहती है
बदलता ही है वक्त
बदले हुए वक्त में
बदलते ही हैं हम ।
बदलते-बदलते
हमें खुद ही यकीं नहीं होता
कि हम क्या हो गए हैं
कहीं पहुँचने की ख्वाहिश में
हम जहाँ पहुँचते हैं
शायद वहाँ पहुँचना ही नहीं था हमें ।
थामने वाले हाथ भी
छूटते ही हैं एक दिन
जैसे साँस एक दिन
छोड़ ही देती है साथ।
वैसे ही किसी साथ
एक सा नहीं रहता।
१ सितंबर २०१४
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