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अनुभूति में ओम प्रकाश की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
अगर तुम मुझे अपना सको
एक राम और कितने रावण
जिंदगी की नाव
रिश्ते नहीं मरते
वक्त लगता है
साथ

 

रिश्ते नहीं मरते

रिश्ते नहीं मरते
मरता है वक्त
रिश्ते दिल के किसी कोने में
जिंदा रहते हैं
अपनी कुलबुलाहट के साथ
बेहतर कल की आशा में।

रिश्ते पेंड़ की डाल की तरह नहीं हैं
कि टूट गए तो कभी जुड़ न पाए
रिश्ते बदलते वक्त के साथ
फिर उगते हैं
जैसे उग आती हैं नई कोपलें।

जिन्हें आप निकाल चुके हैं दिल से
वे सबसे ज्यादा याद आते हैं
हर नए चेहरे में आप ढूँढते हैं
वही पुराना चेहरा।

कैसे कहें कि रिश्ते मरते हैं
वो लौट-लौट कर आँसू बन उभरते हैं
माँ के आँसू में होते हैं
छोड़ गए बच्चे
पिता के आँसू में होते हैं
बिछड़े भाई
प्रेमी की आँसू में होती है प्रेमिका।

कोई मुक्त नहीं है
न जीव न जंतु
चिड़िया सेवती ही है अंडे को
ताकि जीवित हो सके बच्चे
एक दिन उड़ान भर छोड़ जाने के लिए।

रिश्ते नहीं मरते
मरता है वक्त
और नए वक्त में
फिर-फिर जीते हैं रिश्ते
अनवरत।

१ सितंबर २०१४

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