अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में ओम प्रकाश की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
अगर तुम मुझे अपना सको
एक राम और कितने रावण
जिंदगी की नाव
रिश्ते नहीं मरते
वक्त लगता है
साथ

  एक राम और कितने रावण

राम का लंका पर धनुष साधना
अत्याचार के खिलाफ लड़ना था
अहंकार और दंभ की निरंकुश सत्ता को
देना था माकूल जवाब।

हार जाते राम
मार दिए जाते लक्ष्मण
जला दी जाती सीता
तो कैसे लड़ी जाती
लडाई इंसाफ की?

क्या बच पाती सुग्रीव की सत्ता
क्या रह जाती अयोध्या सुरक्षित
रावण का दम्भ
क्या यहाँ नहीं गूँजता?

अहंकार के भयावह युद्ध में
हारे हुए से दीखते हैं राम
धन, वैभव, हथियार,सेना
सब कुछ में पिछड़े हुए|

राम
कैसे सोचते हैं?
अपनी जीत
हारे हुए मन में
कैसे आता है जीत का स्वप्न?

रावण क्या सचमुच चाहता था
अपनी पराजय
क्यों सीता के लिए
दाँव लगा दिया उसने
मंदोदरी की
कैसे देख पाया वह
इंद्रजीत का वध?
रावण के ज्ञान, बुधि, कौशल
को क्यों नहीं भाई
भाई की बातें?

राम ने जीता
पहले स्वयं को
अपने मनोबल को
समय के घनघोर अँधेरे को
भाई के विश्वास को
मित्र के साथ को
संगी-साथी सब को
अपने प्रेम से
और सबों ने अर्पित कर दिया
अपना सर्वस्व|

राम-रावण के युद्ध में
अंततः मारा ही गया रावण
पैदा करके
अनेक रावण

आज भी हारते-हारते ही जीतते हैं राम
और जीतते-जीतते हार जाता है रावण
शायद इसलिए बची है मनुष्यता
शायद इसलिए जीवित हैं राम
हममें, आपमें, हम सब में
ताकि पराजित होता रहे रावणी दम्भ
पराजित होती रहे पशुता
एक राम और अनेक रावण के युद्ध में
जीतते रहे राम
जीतते रहें हम
जीतते रहें आप
जीतता रहे हमारा समय

१ सितंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter