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मंज़िल की तलाश
ज़िन्दगी अनुभव के धुएँ छोड़ती
टेढ़े-मेढ़े रास्तों से गुज़रती रेलगाड़ी
अनजाने से कितने मुसाफिर चढ़ते उतरते
पर्वतों की घुमावदार चढ़ाई
और साथ बैठी तन्हाई
कहाँ जा रही है ज़िन्दगी?
किस स्टेशन की तलाश है, पता नहीं
अनकही-सी चाहत दिल में लिए
ये सफ़र कहीं ख़त्म होगा?
अगर नहीं तो कभी दिल में झाँक कर देखा है
कि मंज़िल क्या है?
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