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अनुभूति में नीलम मिश्रा की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
अनवरत
कुछ भी हो सकता है
एक मुट्ठी
बेटी
यकीनन

 

कुछ भी हो सकता है

अँधेरा बैठा है कोने में गुमसुम सा
जाओ उसे गोद में उठाओ,
और प्यार करो,
जब वह खिलखिलाने लगे,
तो समझना दिन निकल आया है,
वाह री किस्मत !
रात को जाना है
तो दिन को आना है
और जब दिन को
तब रात को आना है
दो सिरे रात और दिन के
इन्हे एक साथ गले मिलते
प्यार करते,
खिलखिलाते हुए
देखना है
कैसे ?
ये तो खुदा जाने
सुना है,
अल्लाह की रहमत हो
तो कुछ भी हो सकता है
कुछ भी हो सकता है
कुछ भी हो सकता है

७ नवंबर २०११

 

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