अनवरत
बचपन में
दीवाली के दिए से तराजू बनाया करते थे
उनका संतुलन साधने के प्रयास में
छोटे हाथ काँपने लगते थे
पर धीरे-धीरे हाथ बड़े होते गए
संतुलन भी बढ़ता गया
तराजू के पलड़ों में
आँसू और मुस्कान रखते गए
कोशिश इसी बात की रही की
मुस्कान का पलड़ा भारी
हो जाए
आँसू और मुस्कान
तराजू के पलड़ों पर
नज़र आ जाते हैं अब भी
पर मुस्कान का पलड़ा कभी भारी नहीं होता
जिन्दगी की इस आपाधापी में
सब कुछ देखकर भी
नजरअंदाज कर देती हूँ
चल पड़ती हूँ अपने घर की ओर
आँसू और मुस्कान में संतुलन
साधने के प्रयास में
अनवरत...
७ नवंबर २०११
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