अनुभूति में
डॉ. नवीनचंद्र लोहानी की
रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
कुछ भी करते हुए
जिद्दी रात
पहाड़
पहाड़ की सुबह
वे कितने बदनसीब होते हैं
हमें कविता सुननी है |
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वे कितने
बदनसीब होते हैं
वे जो सत्ता के करीब होते हैं
बदतमीजी के सान्दर्यशास्त्र से लदे हुए
निहायत लफ्फाजी में दर्शन के सूत्र गढ़ते हुए
सत्ता के लिए पैन्ट के बटन की तरह
इस्तेमाल करते हुए हो जाते हैं महान
जिन्हैं सत्ता माला सौंपती है
गले की लम्बाई चौड़ाई बहुत बढ़ जाती है
गरदनें कहीं झुककर
कहीं तन जाने की
ले आती है गारन्टी
माला वाले चलते हैं आगे-पीछे
मौके पर फिर भी बलिदान होती हैं गरदन
सत्ता इस बीच ढूँढ लेती है दूसरी गरदन
और गरदन दूसरी जगह झुकना कर देती है शुरू
इस तरह नया सौन्दर्यशास्त्र बनता है
बिवेचना का
१७ अक्तूबर २०११ |