अनुभूति में
डॉ. नवीनचंद्र लोहानी की
रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
कुछ भी करते हुए
जिद्दी रात
पहाड़
पहाड़ की सुबह
वे कितने बदनसीब होते हैं
हमें कविता सुननी है |
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हमें
कविता सुननी है
हम सुनना चाहते हैं कविता
वे विचारवान बनाने के लिए
भाषण बधारने लगते हैं
हम एक गीत सुनना चाहते हैं
मगर वो गीत को बेसुरा करार दे देते हैं
और कहते हैं कविता शब्द में नहीं
बस खाली गैप में होती है
हम जानना चाहते है उनके विचार
तो वे कवि बन जाते हैं
इस तरह उनका काव्य और हमारा सोच
पीड़ा करता है एक दूसरे को
कविता उनका आपद् धर्म भी तो नहीं है
वे नहीं रह सकते जिसके बिना
पर कविता एक शगल है उनके लिए
जिसे वह अपनी मौज के लिए
बचाए रखना चाहते हैं
१७ अक्तूबर २०११
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