दुनिया के सारे कुएँ
मँडरा रहा है यह सूरज
अपना प्रबल प्रकाश लिये
मेरे घर की चारों ओर
उसके प्रवेश के लिए
काफी है एक छोटा सा सूराख ही
और जिन्दगी
जो भी अर्जित किया है मैंने
उसे बाहर निकाल देने के लिए
काफी होगा
एक सूराख ही
और प्रशंसनीय है यह तालाब
मिट्टी में बने हजार छिद्रों के बावजूद
बचाये रखता है अपनी अस्मिता
और वंदनीय हो तुम
दुनिया के सारे कुओं
पाताल से भी खींचकर सारा जल
बुझा देते हो प्यास
हर प्राणी की।
३० जून २०१४
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