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अनुभूति में ललिता प्रदीप की रचनाएँ

छंदमुक्त में—
ज़िंदगी की अँधेरी सुरंग
थोड़ी कल्पना मेरी
पूरा भागीदार
भरोसे की कीमत
मेरी हिंदी... मेरी भाषा... मेरी माँ...

 

पूरा भागीदार

कोई मेरे जीवन में यूँ ही आ रहा है
रेगिस्तान में बादलों सा छा रहा है
छोटी सी नदी सा दिखता था,
अब समुद्री लहरों सा टकरा रहा है
कोई भला जीते जागते इंसान को
कैसे ख़ारिज करे ज़िन्दगी से
जो खुशिओं कि सारी बरसात को ला रहा है
मुझे नहीं चाहिए थी कभी तारों क़ी रेखा
वो चाँद ला देता है मेरी देहरी पर
रख देता है अपनी हथेलियों से
मेरी हथेलियों पर
जब रोने के होते है
सौ कारण
तब वो हँसने के देता है हज़ार फार्मूले
वो रेंगता हुआ कहीं मुझमें दिखता है हर वक़्त
वो मेरे आधे जीवन के दर्शन का
पूरा भागीदार है।

२ मई २०११

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