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भरोसे की कीमत
मैं चली तो
तुम्हारे साथ थी
इस राह में विश्वास से
कुछ इस तरह की मीलो के पत्थर भी
न दिखे मुझे संज्ञान में
जब चले थे हम इक राह पर
गर्मी थी तुम्हारे बदन में,
नाजुक सा एहसास था छुवन में,
आँखों में जहाँ थी संजीदगी
वहीं इक दृष्टि भी थी बस मेरे लिए,
अब जब मैं यहाँ खड़ी हूँ
अकेली, हताश, कुछ भटकी सी
अनजान सी इस बिंदु पर
आगे की राह दिखती नहीं मुझे,
दिखती है तो उस ओर जाने को जी चाहता नहीं,
वो मेरी मंजिल नहीं है,
आज जब मैं यह समझ रही हूँ
कि न तो तुम मेरी मंजिल हो,
न ये राह जहाँ मैं आ खड़ी हुई हूँ,
तो मुझे अपने बीते हुए, भटके हुए सालों की टीस
साफ़ दिख रही है अपने आइने में,
तुम साथ थे तो मैंने
प्यार में डूबी अन्य सभी औरतों की तरह
अपनी बुद्धि के दरवाजे बंद कर रक्खे थे,
न राह का ज्ञान रखा, न आने वाली दुविधाओं का
क्यूंकि तुम साथ थे...
ये भरोसा जितना आत्मविश्वास नहीं देता है,
उससे कहीं अधिक किसी को भी
चुका देता है यूँ की
ताउम्र इक भरोसे की कीमत
चुकाना इक ज़िन्दगी देने जैसा सौदा हो जाता है।
२ मई २०११
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