अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में ललिता प्रदीप की रचनाएँ

छंदमुक्त में—
ज़िंदगी की अँधेरी सुरंग
थोड़ी कल्पना मेरी
पूरा भागीदार
भरोसे की कीमत
मेरी हिंदी... मेरी भाषा... मेरी माँ...

 

भरोसे की कीमत

मैं चली तो तुम्हारे साथ थी
इस राह में विश्वास से
कुछ इस तरह की मीलो के पत्थर भी
न दिखे मुझे संज्ञान में
जब चले थे हम इक राह पर
गर्मी थी तुम्हारे बदन में,
नाजुक सा एहसास था छुवन में,
आँखों में जहाँ थी संजीदगी
वहीं इक दृष्टि भी थी बस मेरे लिए,
अब जब मैं यहाँ खड़ी हूँ
अकेली, हताश, कुछ भटकी सी
अनजान सी इस बिंदु पर
आगे की राह दिखती नहीं मुझे,
दिखती है तो उस ओर जाने को जी चाहता नहीं,
वो मेरी मंजिल नहीं है,
आज जब मैं यह समझ रही हूँ
कि न तो तुम मेरी मंजिल हो,
न ये राह जहाँ मैं आ खड़ी हुई हूँ,
तो मुझे अपने बीते हुए, भटके हुए सालों की टीस
साफ़ दिख रही है अपने आइने में,
तुम साथ थे तो मैंने
प्यार में डूबी अन्य सभी औरतों की तरह
अपनी बुद्धि के दरवाजे बंद कर रक्खे थे,
न राह का ज्ञान रखा, न आने वाली दुविधाओं का
क्यूंकि तुम साथ थे...
ये भरोसा जितना आत्मविश्वास नहीं देता है,
उससे कहीं अधिक किसी को भी
चुका देता है यूँ की
ताउम्र इक भरोसे की कीमत
चुकाना इक ज़िन्दगी देने जैसा सौदा हो जाता है।

२ मई २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter