अनुभूति में
कविता
सुल्ह्यान की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
आकाश
एक टुकड़ा आसमान
मूक वाणी
सार
गीतों में-
सावन
|
|
एक टुकड़ा आसमान
मैंने देखा-
खिड़की से झाँकता
एक टुकड़ा आसमान
मैंने सोचा-
मैं भी कभी उड़ूँ
नीला आसमान छू लूँ
काँपते हुए अधरों से
एक चुम्बन जड़ दूँ
धीरे से कपोल सहलाऊँ
उसे आलिंगन में भर लूँ
पंख पसार कर अपने
उसकी अथाह विराटता पर
लोट-लोट जाऊँ हो मदमस्त
उड़ूँ इतना कि न समझूँ
एक छोर से दूसरा छोर
नभ रहे निश्चल मूक
मैं प्रेम तान गाऊँ
उड़ते हुऐ रुई से बादल
हाथ में पकड़-पकड़
मनचाहे रेखाचित्र बनाऊँ
पंख पसारे पाखी जैसे
मुक्त विचरण करूँ नभ में
मेरे हिस्से में आया हुआ
खिड़की से झाँकता
एक टुकड़ा आसमान
मैं भी चुपके से चुरा लूँ
१५ जुलाई २०१३
|