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प्यार पाँच कविताएँ
परिभाषा
प्यार
एक चिंदी पर दर्ज
पीड़ित अंतःकरण के
आयतन की
नाप!
क्षण
तब चुप्पी
हल्की पीली धूप–सी होती है
और क्षितिज हमारा हृदय।
कुछ देर के लिए
कांच की सतह बन जाती है
पानी की परत,
बर्फ सफेद चादर
और पारे की तरह भारी ज़िंदगी
उड़ते कपास जैसी।
समय ईंधन होता है
कठिनाइयों को ठेल कर किनारे करने में
खर्च होने के लिए
या उम्मीद की लौ के जलने में।
उपस्थिति
प्यार है फिर भी
जीवित हठ की तरह
जैसे इतने शत्रुतापूर्ण माहौल में
कविता।
जैसे इतनी उदासी में
विवेक।
समझ
(हिरना, समझ–बूझ बन चरना'– कबीर मार्फत कुमार गंधर्व)
हिरन हुए हम।
वन चरे समझ–बूझ के साथ।
यात्राएं योजना बना कर की।
युद्ध रणकौशल से लड़े।
चीजों को जानने में
पूरी समझदारी बरती
और तमाम नासमझियां बचाए रखीं
प्यार के विरल,
अल्पकालिक,
अप्रत्याशित,
क्षणों के लिए।
एहसास
सोचा हर बार पूरे स्वार्थ के साथ
उन अनुभूतियों को
अपने लिए बचा–छिपा लेने के बारे में।
रिसती रहीं वक्त–बेवक्त
सपनों के पोरस बरतन से
कविता में।
और फिर तंग आकर हम
उन्हें बयान करते रहे
अपने लोगों के बीच
और अनसुने रहे
अनकहे–से।
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