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चाहत
खामोश उदास घंटियों के
बज उठने की सहसा उपजी ललक,
घास की पत्तियों का
मद्धम संगीत,
रेगिस्तान में गूंजती
हमें खोज लेने वाले की विस्मित पुकार,
दहकते जंगल में
सुरक्षित बच रहा
कोई नम हरापन।
यों आगमन होता है
आकस्मिक
प्यार का
शुष्कता के किसी यातना शिविर में भी
और हम चौंकते नहीं
क्योंकि हमने उम्मीदें बचा रखी थीं
और अपने वक्त की तमाम
सरगर्मियों और जोखिम के
एकदम बीचोबीच खड़े थे।
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