अनुभूति में
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भाषा में छिप जाना स्त्री का
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कविता
सात भाइयों के बीच चम्पा
छंदमुक्त में-
चाहत
प्यार पाँच कविताएँ
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सात भाइयों के बीच चंपा
सात भाइयों के बीच
चम्पा सयानी हुई।
बाँस की टहनी-सी लचक वाली
बाप की छाती पर साँप-सी लोटती
सपनों में काली छाया-सी डोलती
सात भाइयों के बीच
चम्पा सयानी हुई।
ओखल में धान के साथ
कूट दी गई
भूसी के साथ कूड़े पर
फेंक दी गई
वहाँ अमरबेल बन कर उगी।
झरबेरी के साथ कँटीली झाड़ों के बीच
चम्पा अमरबेल बन सयानी हुई
फिर से घर में आ धमकी।
सात भाइयों के बीच सयानी चम्पा
एक दिन घर की छत से
लटकती पाई गई
तालाब में जलकुम्भी के जालों के बीच
दबा दी गई
वहाँ एक नीलकमल उग आया।
जलकुम्भी के जालों से ऊपर उठकर
चम्पा फिर घर आ गई
देवता पर चढ़ाई गई
मुरझाने पर मसल कर फेंक दी गई,
जलायी गई
उसकी राख बिखेर दी गई
पूरे गाँव में।
रात को बारिश हुई झमड़कर।
अगले ही दिन
हर दरवाज़े के बाहर
नागफनी के बीहड़ घेरों के बीच
निर्भय-निस्संग चम्पा
मुस्कुराती पाई गई।
५ अगस्त २०१३
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