प्रकृति में खो
जाएँ
काश कभी वो दिन भी आए
भूल सभी को हम तुम साथी
दूर प्रकृति में खो जाएँ
विराट सृष्टि के हो जाएँ।
मंद-मंद बह रहा अनिल हो
झरने का मृदु कलकल रव हो
हिमशिखरों में सूरज चमके
प्रतिबिम्बित नीलाभ झील में
रंगबिरंगी मधुमय छवि हो
भौरों के गुन-गुन गुंजन को
स्वर अपना हम देकर गाएँ
भूल सभी को हम तुम साथी
दूर प्रकृति में खो जाएँ
बैठे हों सागर के तीरे
लहरों को गिनते रह जाएँ
रवि की आभा देखें एकटक
और सपनों में खो जाएँ
जब सूरज ढल जाए साथी
पंछी गीत मिलन के गाएँ
अंबर में चंदा मुस्काए
पपीहा करुण पुकार लगाए।
सर्पीली पगडंडी पर हम
थामे एक दूजे का हाथ।
निकल पड़ें नीरव रजनी में
कभी न छूटे अपना साथ।
चलते-चलते हम-तुम दोनों
दूर सितारों तक हो आएँ।
काश कभी वो दिन भी आए
भूल सभी को हम तुम साथी
दूर प्रकृति में खो जाएँ
विराट सृष्टि के हो जाएँ।
२२
जून २००९ |