रस्ते में
बादल रस्ते में
बादल
दो चार छू गए
घर बिजली के नंगे
तार छू गए।।
आँगन से भागे दालान में गए
एक अदद मीठी मुस्कान में गए
अंधियारे सौ-सौ
त्यौहार छू गए।।
बाहों में झील भरे ताल भरे हम
फूलों से लदी-लदी डाल भरे हम
केवड़े कदंब
बार-बार छू गए।।
बरखा में हरे-हरे धान की छुवन
नहले पर दहला मेहमान की छुवन
घर बैठे -
बदरी केदार छू गए।। |