अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में कैलाश गौतम की
रचनाएँ-

दोहों में-
वसंती दोहे

गीतों में-
आई नदी
गाँव गया था गाँव से भागा
बरसो मेघ
बारिश में घर लौटा कोई
रस्ते में बादल
यही सोच कर

संकलन में-
वर्षा मंगल - हिरना आँखें

  रस्ते में बादल

रस्ते में बादल
दो चार छू गए
घर बिजली के नंगे
तार छू गए।।

आँगन से भागे दालान में गए
एक अदद मीठी मुस्कान में गए
अंधियारे सौ-सौ
त्यौहार छू गए।।

बाहों में झील भरे ताल भरे हम
फूलों से लदी-लदी डाल भरे हम
केवड़े कदंब
बार-बार छू गए।।

बरखा में हरे-हरे धान की छुवन
नहले पर दहला मेहमान की छुवन
घर बैठे -
बदरी केदार छू गए।।

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter