रसीले बादल बरसे री
मन में कोई कोंधे आली।
याद-घटा घहराए काली।
ठिठुर गई मैं भींग गई
आली? भीतर से री।
बादल बरसे री
रसीले बादल बरसे री।
सभी ओर पानी ही पानी
धरती की काया पनियानी।
चाहें तक पानी हो आईं।
तरसे-तरसे री।
बादल बरसे री।
नशीले बादल बरसे री।
ये बरस हलके हो जाते।
इनके दुख कल के हो जाते।
अनभींगा-दुख भींगे बादल।
लगे ज़हर से री।
बादल बरसे री।
सजीले बादल बरसे री।
देख कि कैसे लूम रहे हैं।
गीली धरती चूम रहे हैं।
आलिंगन में बँधे जा रहे,
शैल-शिखर से री।
बादल बरसे री।
हठीले बादल बरसे री।
पहिले कभी न रोकी राहें।
कभी न फेंकी कपट-निगाहें।
आज ठहीले छल कर बैठे,
ढीठ निडर से री।
बादल बरसे री
- बृजमोहन सिंह ठाकुर
31 अगस्त 2005
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