अनुभूति में
कैलाश गौतम की
रचनाएँ-
दोहों में-
वसंती दोहे
गीतों में-
आई नदी
गाँव गया था गाँव से भागा
बरसो मेघ
बारिश में घर लौटा कोई
रस्ते में बादल
यही सोच कर
संकलन में-
वर्षा मंगल - हिरना आँखें
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बारिश में घर लौटा
कोई बारिश में घर लौटा
कोई दर्पण देख रहा,
न्यूटन जैसे पृथ्वी का आकर्षण देख रहा।।
धान-पान सी आदमकद
हरियाली लिपटी है,
हाथों में हल्दी, पैरों में,
लाली लिपटी है,
भीतर ही भीतर कितना परिवर्तन देख रहा।।
गीत, हँसी, संकोच, शील सब -
मिले विरासत में,
जो कुछ है इस घर में सब कुछ
प्रस्तुत स्वागत में,
कितना मीठा है मौसम का बंधन देख रहा।।
नाच रही है दिन की छुवन,
अभी भी आँखों में
फूलझरी-सी छूट रही है -
वही पटाखों में
लगता जैसे मुड़-मुड़ कोई हर क्षण देख रहा।।
दिन भर चाह रही होठों पर -
दिन भर प्यास रही
रेशम जैसी धूप रही-
मखमल-सी घास रही
आँख मूँदकर सुख सर्वस्व समर्पण देख रहा।। |