अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में डा हृदय नारायण उपाध्याय की रचनाएँ-

अंजुमन में-
फूल काँटों में
फूल हम बन जाएँगे
बाकी सबकुछ अच्छा है

दोहों में-
मधुमास के दोहे

छंदमुक्त में
अनुत्तरित प्रश्न
सूरज, चाँद, फूल और चिड़िया


 

 

सूरज, चाँद, फूल और चिड़िया

मैंने चाहा सूरज से उसकी चमक और तेज
सूरज ने कहा :
मेरी तरह तप कर गतिशील बनो
तपने से चमक और तेज आएगा
तब लोग तुम्हें सुबह-सुबह देखना चाहेंगे,
मैंने चाहा चांद से, उसकी शीतलता एवं दूधिया प्रकाश
चांद ने कहा :
मिटा दो अपने भीतर का अंधेरा
पीते रहो दुनिया का दुख दर्द को
देखना एक दिन स्वयं विमल कांति फूटेगी
और दर्शनीय बन जाओगे,
मैंने चाहा फूलों से उनकी महक और मुसकान
फूलों ने कहा :
काटों में पलकर यदि खिल सको
दूसरों के श्रृंगार के लिए खुशी से मिट सको
तो निश्चित ही सुरभित और शोभित होकर
वंदनीय बन जाओगे,
मैंने चाहा चिड़ियों से उनकी चहक और
उत्फुल्ल कलरव
चिड़ियों ने कहा :
संतुष्ट रहना यदि सीख सको
कर्मशील रहकर यदि जी सको
तो निश्चित ही तुमसे संगीत फूटेगा
और तुम स्मरणीय बन जाओगे,
काश सूरज, चांद, फूल और चिड़ियों से
हम कुछ सीख पाते।

२४ जनवरी २००६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter