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सूरज, चाँद, फूल
और चिड़िया
मैंने चाहा सूरज से उसकी चमक और
तेज
सूरज ने कहा :
मेरी तरह तप कर गतिशील बनो
तपने से चमक और तेज आएगा
तब लोग तुम्हें सुबह-सुबह देखना चाहेंगे,
मैंने चाहा चांद से, उसकी शीतलता एवं दूधिया प्रकाश
चांद ने कहा :
मिटा दो अपने भीतर का अंधेरा
पीते रहो दुनिया का दुख दर्द को
देखना एक दिन स्वयं विमल कांति फूटेगी
और दर्शनीय बन जाओगे,
मैंने चाहा फूलों से उनकी महक और मुसकान
फूलों ने कहा :
काटों में पलकर यदि खिल सको
दूसरों के श्रृंगार के लिए खुशी से मिट सको
तो निश्चित ही सुरभित और शोभित होकर
वंदनीय बन जाओगे,
मैंने चाहा चिड़ियों से उनकी चहक और
उत्फुल्ल कलरव
चिड़ियों ने कहा :
संतुष्ट रहना यदि सीख सको
कर्मशील रहकर यदि जी सको
तो निश्चित ही तुमसे संगीत फूटेगा
और तुम स्मरणीय बन जाओगे,
काश सूरज, चांद, फूल और चिड़ियों से
हम कुछ सीख पाते।
२४ जनवरी २००६ |