कविताओं में- क्रूर आलोचक कहाँ कहाँ डोलूँगा दुर्घटना तुम्हारा स्पर्श पहाड़ के उस पार लंबा ख़त मैंने कविता लिखी
जब ध्वनि असीम होकर सम्मुख हो तो कान बन्द कर लेना बुद्धिमानी नहीं जो ध्वनि का सत्य है वह असीम ही है।
चलोगे तो पग-ध्वनि भी निकलेगी अपनी पग-ध्वनि काल की निस्तब्धता मे सुनो समय का शोर तुम्हारी पग-ध्वनि का क्रूर आलोचक होगा।
२९ नवंबर २००८
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